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जीने का हौसला है / ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग'

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जीने का हौसला है, ये और बात है

जीने का फैसला कहाँ अपने हाथ है


खुद को तलाशने में समझ आ गई हमें

सागर में एक बूँद की कितनी बिसात है


सूरज न निकलने से समय तो नहीं थमा

होता रहा है दिन भी, हुई रोज़ रात है


घिरकर मुसीबतों में न डरना, ये सोचना

गम़ डाल-डाल है, तो खुशी पात-पात है


देखें ज़रा तो हम भी कि इस राहे-वक्त़ में

मंजिल कहाँ कज़ा है, कहाँ पर हयात है