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जीवन-समर / मुनीश्वरलाल चिन्तामणि
Kavita Kosh से
समाज में
स्वार्थ की
सड़ाँध ने
अब जीना
मुश्किल कर दिया है ।
अपने समक्ष
जीवन-समर में
खड़े शिखंडियों को
देखकर
कर्मठों की भी
प्रत्यंचा
ढीली पड़ जाती है ।
यद्यपि वे
अपने को
भीष्म घोषित करते
नहीं सकुचाते ।