भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जीवन-साथी से / परवीन शाकिर
Kavita Kosh से
धूप में बारिश होते देख के
हैरत करने वाले !
शायद तूने मेरी हँसी को
छूकर
कभी नहीं देखा !