भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जीवन / कविता वाचक्नवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जीवन तो
यों
स्वप्न नहीं है
आँख मुँदी औ’ खुली
चुक गया।

यह तपते अंगारों पर
नंगे पाँवों
हँस-हँस चलने
बार-बार
प्रतिपल जलने का
नट-नर्तन है।