जीवन एक प्रश्न / ईहातीत क्षण / मृदुल कीर्ति
में अनंत प्रश्नों के घेरे में
चक्कर काटती ,
एकांत निष्ठाओं में छिपे
किसी की पकड़ में न आने वाले ,
उत्तरों की शोध में,
कितने जन्मों से
जन्म मरण को झेल रही हूँ.
अकथ अन्तर वेदना ,
प्रश्नाकुल अंधियारी गलियों में,
संत्रास से घायल ,
मेरा चारों ओर फैला प्राण उद्वेलित हो उठा है,
अपने को पाने की बैचैन आत्मा की ,
चैतन्य कामना,
समझ समाप्त है, और प्रश्न
अंतहीन होता जा रहा है.
अंतहीन नियंता से एक और प्रश्न
क्यों इतना विचित्र है ,
वह अनंता ,
जिसका पूर्ण ज्ञान केवल मिथ्या माया के खेल,
देखने में, जुटाने में, बनाने में, मिटाने में ही,
अनंत काल से लगा हुआ है .
एक अंत हीन पृथ्वी ,
अंत हीन आकाश
अंत हीन ब्रह्माण्ड
किसी सात्विक मुहूर्त में,
मेरे भी प्राण क्यों अंत हीन नहीं हो जाते हैं ?
बाहरी पृथ्वी से असम्पृक्त होकर
अपनी ही मूल पृथ्वी पर
प्राणों का मन क्यों नहीं लगता ?
क्यों हम जनम -मरण को झेलते हैं.
जीवन का यह अबूझ प्रश्न है.