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जीवन एक रंग अनेक / अमिताभ रंजन झा 'प्रवासी'

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कभी ख़ुशी की हो हरयाली
कभी संकट की बदरी काली
कभी शर्म की होती लाली!
कोयल कूके दे सन्देश
हर पल रख इरादा नेक
जीवन एक रंग अनेक!

कभी चोट से होते नीला
कभी रोग से पड़ते पीला
कभी आशा का होत उजाला!
राज हिमालय दे उपदेश
कभी न मानव मस्तक टेक
जीवन एक रंग अनेक!

प्रीत का होता रंग गुलाबी
नारंगी होता बैरागी
भूरी होती विरह-तन्हाई!
शांति का होता रंग सफ़ेद
आँखें खोल मन से देख
जीवन एक रंग अनेक!

क्रोध का चेहरा होता लाल
ईर्ष्या होती स्याह रंग की
काला होता द्वेष-क्लेश!
नवजीवन का करें श्रीगणेश
सारी बुराई मन से फ़ेंक
जीवन एक रंग अनेक!

कभी कभी पूरी सतरंगी
कभी कभी बिलकुल बेरंगी
जीवन है ये रंग बिरंगी!
जीता जा तू रंग हरेक
जोर से बोलो हो के एक
जीवन एक रंग अनेक!

बदले पल-पल रूप और भेष
जीवन रंगो का समावेश
जो समझा वह हुआ धनेश!
होली रंग-पर्व है विशेष
आओ मनाये हो के एक
जीवन एक रंग अनेक!