भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जीवन का क्षण-क्षण नाच रहा (दशम सर्ग) / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


जीवन का क्षण-क्षण नाच रहा
नभ में घन, जलनिधि में जलकण, धरती का तृण-तृण नाच रहा
 
तृण-तरु-नर्तित शत-वर्ण सुमन
है सुमन-सुमन में अलि-गुंजन
गुंजन में गति, गति में तड़पन
तड़पन में यौवन नाच रहा
 
यौवन में शत-शत आशायें
आशाओं में अभिलाषायें
अभिलाषाओं में क्या पायें?
केवल सूनापन नाच रहा
 
इस सूनेपण में मैं केवल
मुझमें मेरी सत्ता का बल
सत्ता में शाश्वतता का छल
छल में बेसुधपन नाच रहा
जीवन का क्षण-क्षण नाच रहा
नभ में घन, जलनिधि में जलकण, धरती का तृण-तृण नाच रहा