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जीवन का यह चलन / रमा द्विवेदी
Kavita Kosh से
पवन चले सनन-सनन मेरे देश में,
पायल बजे छनन-छनन मेरे देश में।
शहनाइयाँ कहीं बज रहीं,
ड़ोलियाँ कहीं सज रहीं,
कंगना करें खनन-खनन मेरे देश में…
पवन चले सनन-सनन मेरे देश में।
बगिया कहीं महक रही,
कहीं तितलियाँ बहक रहीं,
भौरे फिरैं चमन-चमन मेरे देश में..
पवन चले सनन-सनन मेरे देश में।
कहीं बदलियाँ बरस रहीं,
कहीं सजनियाँ तरस रहीं,
आँसू गिरैं घनन-घनन मेरे देश में…
पवन चले सनन-सनन मेरे देश में।
हिमगिरि कहीं विराट है,
सागर कहीं विशाल है,
नदियाँ बहैं मगन-मगन मेरे देश में,
पवन चले सनन-सनन मेरे देश में।
कहीं योगी तप में लीन है,
कहीं भोगी रस-विलीन है,
जीवन का यह चलन-चलन है मेरे देश में..
पवन चले सनन-सनन मेरे देश में।