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जीवन का शृंगार तुम्हीं हो / गरिमा सक्सेना
Kavita Kosh से
जीवन का शृंगार तुम्हीं हो।
तुमसे ही साँसें चलतीं ये
है तुमसे धड़कन इस दिल की
प्राण! जगत में तुमको पाकर
चाह करूँ मैं किस मंजिल की
मैं नौका हूँ, जीवन, धारा
औ इसकी पतवार तुम्हीं हो।
अधरों की लाली में तुम हो
तुमसे बिंदी, काज़ल ,कंगन
हर पल है बस तुम्हें बुलाती
मेरी पायल की ये छनछन
तुमसे हैं त्यौहार, पर्व सब
खुशियों का आधार तुम्हीं हो।
तुम को चाहूँ तुम को पूजूँ
तुम से रूठूँ तुम्हें मनाऊँ
जीवन में अंतिम साँसों तक
प्राण तुम्हारा साथ निभाऊँ
सुख, दुख जीवन के हर क्षण में
प्यार और उपहार तुम्हीं हो।