भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जीवन क्या है? / महावीर प्रसाद ‘मधुप’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तूफ़ान के बीच मचलते,
पल के लिए न प्रण से टलते,
एकाकी कुटिया में जलते,
मिट्टी के नन्हें दीपक से मैंने पूछा-
सखे! तनिक मुझको बतलाओ, जीवन क्या है।

बोला, जो तिल-तिल जल जाए,
पर स्वध्येय पर आँच न आए,
परहित में निज प्राण लुटाए,
जो न मौत से डरना जाने, वह जीवन है।
संघर्षों से हार न माने, वह जीवन है।।

भर उमंग में पागल-सा बन,
दीपशिखा से कर आलिंगन,
अर्पित करने को निज तन-मन,
भगे जा रहे मत्त शलभ से मैंने पूछा-
ठहरो दो क्षण मीत! बताओ वह जीवन है।।

बोला, जो मन में बस जाए,
नेह न उससे घटने पाए,
प्रतिपल गीत प्रीत के गाए,
चढ़े प्यार की बलिवेदी पर, वह जीवन है।
प्रिय पर सब कुछ करे निछावर, वह जीवन है।।

द्वार-द्वार पर अलख जगाते,
मधुऋतु का संदेश सुनाते,
सुरभित सुमनों पर मंडराते,
झूम-झूम कर मस्ती में सरवर पर गाते,
रसिक भ्रमर से मैंने पूछा- वह जीवन है।।


बोला, जो दुख को दुलराए,
काँटों से तन को बिंधवाए,
अवरोधों में प्रीत निभाए,
प्रिय की हरदम चाह करे जो, वह जीवन है।
मुख से कभी न आह करे जो, वह जीवन है।।

निज आलोक बिछा जल-थल में,
मोद मनाते तारक दल में,
दूर चमकते नभ-मण्डल में,
पूनम के मनहर चन्दा से मैंने पूछा-
बन्धु! तनिक मुझको बतलाओं, जीवन क्या है।

बोला, उन्नत भाल किए जो,
उर में सौ-सौ घाव लिए जो,
विष-अमृत सुख मान पिए जो,
जिए स्वयं, जीना सिखलाए, वह जीवन है।
निज प्रकाश जग में फैलाए, वह जीवन है।।

भर आमोद अतुल निज मन में,
क्रीड़ा करते मुक्त पवन में,
पंख पसारे नीलगगन में,
उडे़ जा रहे लघु पंछी से मैंने पंछा-
प्यारे विहग! मुझे बतलाओं, जीवन क्या है?
बोला, जो जग में खुल खेले,
सर्दी-गर्मी हँस कर झेले,
क्षण-क्षण जीवन का रस ले ले,
स्नेह सिन्धु के बीच बहे जो वह जीवन है।
होकर नित स्वाधीन रहे जो, वह जीवन है।।

हर दर्शक के मन को हरते,
मीठे स्वर में कल-कल करते,
पर्वत की गोदी से झरते,
उत्साही अबाध निर्झर से मैंने पूछा-
मित्र! तनिक मुझको बतलाओं, जीवन क्या है।।

बोला, जो बढ़ता ही जाए,
बाधा कोई रोक न पाए,
कोई जिसको टोक न पाए,
आशा का नित पाठ पढ़े जो, वह जीवन है।
ख़ुद ही अपना भाग्य गढ़े जो, वह जीवन है।

नभ में उमड़-घुमड़ घहराते,
विद्युत के संग रास रचाते,
तप्त धरा की तपन मिटाते,
जल बरसाते नवजीवन दायक जलधर से,
पूछा, प्यारे जलद! बताओं जीवन क्या है?

बोला, जो कुछ कर दिखला दे,
हर्षित हो, तो फूल खिला दे,
रूठ जाए तो प्रलय मचा दे,
भग्न उरों में साहस भर दे, वह जीवन है।
जर्जर को अनुप्राणित कर दे, वह जीवन है।।