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जीवन फिर चाहिए / बालस्वरूप राही

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धुएं और गंध भरे इस युग में
आओ, हम अर्थ की तलाश करें
चाहे वह व्यर्थ हो।

इस विराट संशय का
कोई तो समाधान होगा
इस नृशंस, बर्बर, प्रतिशोध भरी भीड़ में
कोई तो दयावान होगा।
धकियाए बिना हमें गुज़रे जो पास से
देखे जो हमको विश्वास से
शायद वह शहर के तरीक़ों से अजनबी
गंवार हो
शायद वह कायर हो
शायद अवतार हो।

आओ, उस व्यक्ति को पुकारें हम
शायद वह निर्बल ही कुछ अधिक समर्थ हो।

आओ, हम उस असिद्ध मौलिक को खोजें
जिस के अनुवाद भ्रष्ट हर जगह प्रचारित हैं।

जो अपूर्ण कविता-सा किंचित अस्पष्ट है
जो पुराण गाथा सा काफी संदिग्ध है
जो विलुप्त भाषा सा क़ैद शिलालेखों में
जो हममें कभी कभी पंख फड़फड़ाता है
और हमें लगता है।

जहां जहां मिथ्या, परवशता, अन्याय है
वहां-वहां लड़ने के वास्ते
और रुधिर चाहिए
जीवन फिर चाहिए।

जो हममें भरा हुआ रीता है
जो हममें मरा हुआ रीता है

आओ उस वैकल्पिक अनुभव को पहचानें
सम्भव है
एक वही जीने की शर्त हो
धुएं और धुंध भरे इस युग में।