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जीवन मे घुरय चाहैत छलहुँ हम / दीप नारायण

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शेष अछि जीवनक कैनवास पर
एकगोट रंग अहाँ लग
उदास सेआह रातिक रंग
आँखिक काजर जेना घोरा गेल हो अहाँक

उघि रहक एकगोट सक्कत चुप्पी अपन काया पर
कय युग सँ
रौद, बसात आ वर्खा गमओने
पतझड़ मे झड़ल किछु पातक ओछानि पर
बेबस आ नाचार चिरैयक
अधखिज्जु सपना जेना
चितिर-वितिर
हमरो लग पड़ल छल एकगोट रंग

दूर
बहुत दूर
पृथ्वीक अंतिम छोड़ पर
जतय धरती आ आकाश
एक होइत देखाइत हो
जतय सुरुज अँकुरैत हो गुलाबी रंग लेने
अनंत आकाश आ पृथ्वीक मिलन विंदु पर
हमर-अहाँक रंगक मिलनि
आलिंगन आ चुम्बन
जाहि मे घोरल अछि इश्वरक आँखि

एकहि संग उधकब हमर-अहाँक रंग केँ
रंग मे मिज्झर आर रंग जेना
कविता मे विम्ब आ शिल्प

देहक धार अपटि, आत्माक गह मे
बहुत गहींर धरि खहरब
रंगक सूत्र लेने
एक गोट नव चित्र गढ़ब
एक लप मुस्की आ आँखि भरि आकाश

एक मात्र ओजह छल
अहाँक प्रेम मे घुरिआएब हमर

जीवन मे घुरय चाहैत छलहुँ
हम।