भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जीवनदीप / महादेवी वर्मा
Kavita Kosh से
किन उपकरणों का दीपक,
किसका जलता है तल?
किसकी वर्ति, कौन करता
इसका ज्वाला से मेल?
शून्य काल के पुलिनों पर—
आकर चुपके से मौन,
इसे बहा जाता लहरों में
वह रहस्यमय कौन?
कुहरे सा धुंधला भविष्य है,
है अतीत तम घोर;
कौन बता देगा जाता यह
किस असीम की ओर?
पावस की निशि में जुगुनू का—
ज्यों आलोक-प्रसार,
इस आभा में लगता तम का
और गहन विस्तार।
इन उत्ताल तरंगों पर सह—
झंझा के आघात,
जलना ही रहस्य है बुझना—
है नैसर्गिक बात।