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जीवनाधार / अनुपमा पाठक
Kavita Kosh से
दूर हैं तुमसे?
तो क्या...
मन में गंगा की धार समेट लाये हैं!
सारा प्यार...
समस्त जीवनाधार
समेट लाये हैं!
हमारी किस्मत की तरह...
ऐ! माटी...
तू भी हर पल
साथ है...
तीज की पूजा हेतु
गौरी-गणेश बनाने को
हम कुछ रजकणों से संस्कार
समेट लाये हैं!
सावन की फुहारें...
तो हैं यहाँ...
पर भोले बाबा को
अर्पित होने वाले
बेलपत्र कहाँ हैं...?
सावन से जुडी...
इन पावन यादों का
पारावार समेट लाये हैं!
भाव-भाषा...
सब तो वही है...
अपने हृदय में
सबकुछ तो संजोया पूर्ववत ही है...
इस आपाधापी में...
सुकून हेतु
कुछ कोमल
रचनात्मक सरोकार समेट लाये हैं!
दूर हैं तुमसे?
तो क्या...
मन में गंगा की धार समेट लाये हैं!
सारा प्यार...
समस्त जीवनाधार
समेट लाये हैं!