जुगोॅ रोॅ खेल / नवीन ठाकुर ‘संधि’
खेल रे नुनू खेल खिलौना,
एैलेॅ आबेॅ नया जमाना।
पहिन्नें खेलै बेटी चेथरी रो कनियाय दुल्हा,
धूरा रोॅ घोॅर बनाय छेलै घरनी जराय केॅ चूल्हा।
ओकरा में कोय बनै छेलै पंडित ज्ञानी भोला,
अपन्है में पढ़ी पढ़ाय केॅ बनै गुरूजी टाँगै झोला।
सभ्भेॅ खेलै चोरानुकी कब्बडी जेना, छिपी देहरी कोन्टा कोना,
खेल रे नुनू खेल खिलौना, एैलेॅ आबेॅ नया जमाना।
उठी गेलै गोल चुक्का, फूटबॉल, भॉलीबॉल,
बड़का तेॅ बड़का छुटकुनियां खेलै किरकेट कमाल।
पहिलकोॅ खेल याद आवै तेॅ, आबेॅ बड़ा मलाल,
नाम सुनाय छी पहिलकोॅ खेलोॅ रोतेॅ हाँसे बड़ा बेहाल।
कोय नै खोजै सुपती,मौनी, बेलून आरो फुलौना,
खेल रे नुनू खेल खिलौना, एैलेॅ आबेॅ नया जमाना।
पानी में खेलै छेलै हरदी गुरदी सेल- सेल,
आय काल रोॅ खेलोॅ सें नै छै कोनोॅ मेल।
नया खेलोॅ में बुतरू खूब लड़ै छै पेलमपेल,
गुल्ली डंटा होवे करलै, होलै घरघोट फेल।
कत्तेॅ अंतर होलै ‘‘संधि’’, जत्तेॅ अंतर सोना,
खेल रे नुनू खेल खिलौना, एैलेॅ आबेॅ नया जमाना।