भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जे छलै अभिशप्त मानव / एस. मनोज

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जे छलै अभिशप्त मानव वैह एखन अछि लड़ि रहल
श्वेदकण सँ सीचिंके ओ पेट सबहक भरि रहल

एक गज धरतीक टुकड़ा ओकरा नहिं अछि धर ल
दुधमुंहा नेना ओकर अछि नभकें नीचाँ जरि रहल

राति ओकर बीत जयतै सड़क वा फुटपाथ पर
शौच ल ओ कतय जयतै अहि सोचे डरि रहल

जय जवानक जय किसानक नारा की लगबै छलहुँ
सीमा पर आ खेतमे ओ नित एतय अछि मरि रहल
 
सप्तरंगी योजनामे कार्य बल तल्लीन अछि
ओ में जे अछि गरीब लेखे फाइलेमे सड़ि रहल।