भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जेब / प्रयाग शुक्ल
Kavita Kosh से
मेरी भी एक जेब है ।
पत्नी कहती है
रहती है खाली ।
खाली जेब हर सुबह मिलती है खाली ।
कोट की जेब हो या कमीज़ की ।
पेड़ को चिंता नहीं है ठूँठ की
चिड़ियाँ चहचहाती हैं
मैं जब एक पगडंडी पर चला जा रहा होता हूँ
घास पर-- पीली मुरझाई घास पर
धीरे-धीरे माथे को तपा कर धूप
दिलाती है याद हज़ार चीज़ों की ।
मैं हाथ डालता हूँ जेब में
खाली जेब । खाली । कोई बात नहीं
मैं उसे धूप पर उलट दूँ
या बंद रखूँ
कोई फ़र्क नहीं पड़ता ।
खाली । जेब । खाली जेब की स्मृतियाँ ।