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जो आजादी की मीरे कारवाँ है / नज़ीर बनारसी
Kavita Kosh से
जो आजादी की मीरे कारवाँ है
यही जी हाँ यही उर्दू जबाँ है
वही मैं हूँ वही मेरी ज़बाँ है
तुम्हारा अहदो पैमाँ <ref>प्रतिज्ञा</ref> अब कहाँ है
मुहब्बत इए मुकम्मल दास्ताँ है
अब अपना-अपना अंदाजे बयाँ हैं
जमाने की जबाँ क्यों चुप रहेगी
सुनो जो कुछ तुम्हारी दास्ताँ है
मिरे होते मिरी कश्ती डुबो दे
किसी तूफाँ में ये जुरअत कहाँ है
मुझे देखो, न देखो उम्र मेरी
वही मैं हूँ वही अज्मे जवाँ <ref>जवानी का संकल्प</ref> है
कहाँ से लायेगा वो खुशगुमानी <ref>खुश होने का भ्रम</ref>
जो अपनी जिन्दगी से बदगुमाँ <ref>शक्की</ref> है
’नजीर’ अहमद है जिसका नाम नामी
सुना वो शायरे हिन्दोस्ताँ है
शब्दार्थ
<references/>