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जो छुपाकर जहाँ से रक्खा है / नीरज गोस्वामी
Kavita Kosh से
देखने में मकाँ जो पक्का है
दर हक़ीक़त बड़ा ही कच्चा है
ज़िंदगी कैसे प्यारे जी जाये
ये सिखाता हर एक बच्चा है
छाँव मिलती जहाँ दोपहरी में
वो ही काशी है वो ही मक्का है
जो अकेले खड़ा भी मुस्काये
वो बशर यार सबसे सच्चा है
जिसको थामा था हमने गिरते में
दे रहा वो ही हमको धक्का है
आप रब से छुपायेंगे कैसे
जो छुपाकर जहाँ से रक्खा है
जब चले राह सच की हम ‘नीरज’
हर कोई देख हक्का बक्का है