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जो नर दुख में दुख नहिं माने / नानकदेव

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जो नर दुखमें दुख नहिं मानै।
सुख-सनेह अरु भय नहिं जाके, कंचन माटी जानै॥

नहिं निंदा, नहिं अस्तुति जाके, लोभ-मोह-अभिमाना।
हरष सोकतें रहै नियारो, नाहिं मान-अपमाना॥

आसा-मनसा सकल त्यागिकें, जगतें रहै निरासा।
काम-क्रोध जेहि परसै नाहिन, तेहि घट ब्रह्म निवासा॥

गुरु किरपा जेहिं नरपै कीन्ही, तिन्ह यह जुगति पिछानी।
नानक लीन भयो गोबिंदसों, ज्यों पानी सँग पानी॥