भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जो मन-तन विश्राम न पावे / संत जूड़ीराम

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जो मन-तन विश्राम न पावे।
काम क्रोध तिसना मद मातो माया सौं लौ ल्यावै।
कर तप खंड-खंड स्वारथ के स्वांग बनाई जगत रिझावै।
दुख-सुख हान-लाभ नहिं जाके कर्म पैरना नाच नचावै।
जूड़ीराम शब्द बिन चीन्हें एक ठौर नहिं बास बसावै।