भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जोगिन भई राधिका गोरी / ईसुरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जोगिन भई राधिका गोरी।
अवै उमर है थोरी।
बाजन लगी चमीटा चुटकी।
नईं लाज ना चोरी।
अंग भभूत बगल मृगछाला,
डरी कँदा पै झोरी।
ईसुर जाय हटी सौं कइयौं,
पालागन है मौरी॥