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जोगी / बोधिसत्व
Kavita Kosh से
(जूते चमकाने वाले बच्चों के लिए)
वे जूतों की तलाश में
घूमते हैं ब्रश लेकर
और मिलते ही बिना देर लगाए
ब्रश को गज की तरह चलाने लगते हैं
जूतों पर
गोया जूते उनकी सारंगी हों ।
क्या दावे से कहा जा सकता है कि
उन्हें जूतों से प्यार है
जबकि फूल की तरह खिल उठते हैं
जूतों को देखकर वे ।
जब कोई नहीं होता
चमक खो रहे वे
जूतों से गुफ़्तगू करते हैं।
भरी दोपहरी में वे
जमात से बिछुड़े जोगी की तरह होते हैं
जिसकी सारंगी और झोली
छीन ली हो बटमारों ने ।
उन्हें बहुत चिढ़ है उन पैरों से
जिनमें जूते नहीं
बहुत पुरानी और अबूझ पृथ्वी पर
उस्ताद बुंदू खाँ और भरथरी के चेलों की तरह
यश और मोक्ष नहीं
निस्तेज जूतों की तलाश करते हैं वे ।