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ज्ञान का दिव्य प्रकाश / प्रवीण कुमार अंशुमान

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उसका भी ग़ज़ब का
देखो है साथी नाम,
प्रकाशित करना ही
जिसका है हर क्षण काम;

जिसके व्यक्तित्व में समाविष्ट
अनेक विषयों का है ज्ञान,
जो हिंदी साहित्य का
है अतुलनीय एक अभियान;

इतना सरस होकर जो
सहजता से है उपलब्ध,
जिसकी सीमाओं में न्यायमीमांसा
खड़ी रहे हर पल करबद्ध;

जिसके पास शब्दों का
है ऐसा एक भण्डार,
जिसके समक्ष निराकार भी
ले लेता है पूर्ण आकार;

जय-जय हो जिसमें गूँज रहा
हो जिसका विस्तीर्ण सदा आकाश
जो आज विकीर्णित करता है
अपने ज्ञान का दिव्य प्रकाश;

आज जिसकी दृष्टि से
अनावृत हुआ संवाद शिखर,
जिसकी वाणी से गुंजित होकर
शब्द-सुधा गयी और निखर ।