ज्योति-उत्कर्ष / बुद्ध-बोध / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
बहुजन सुख हित, व्यक्ति समाजनिष्ठ भय जीवन अर्पि
तर्पित करइत जीवमात्र हित, जीवन स्वयं समर्पि
त्याज्य ग्राह्य करइत विवेचना सत्य विवेचित तत्त्व
शीलवन्त अष्टांग मार्ग चलि धम्म संघ बुद्धत्व।।37।।
दिव्यदर्शनी देल अनात्महु संस्कारहि निर्वाण
द्वादश स्कन्ध निवेशित बुद्ध भागवत तर्क विधान
प्रत्यक्षहु अनुमान प्रमाणहु आगम वैदिक वाक्य
खंडित कय, पुनि मंडित आगम तन्त्र अहँक मुनि शाक्य।।38।।
धर्मचक्रकेर प्रवर्तनक हित मृगदावक बन जाय
प्रथम कयल उपदेश तत्त्वमत सात्त्विक बौद्ध निकाय
तदनु जैतवन गिरिवज श्रावस्ती बस्ती कत जाय
भिक्खु सिक्ख सँग संधाराम विहारक रचल निकाय।।39।।
आकर्षित कत शिष्य विशिष्य प्रवर्तित हुनि उद्देश्य
क्लेश कलुषमय हिंस्र विश्वमे अहिंसाक उपदेश
पर्णकुटीसँ राजभवन धरि देश-विदेश अशेष
पसरि गेल गौतम मत माध्यम अमृत शान्ति सन्देश।।40।।
कत आनन्द बहुल राहुल अम्बापालिहु उद्बुद्ध
श्रमण श्रावकहु सेट्ठि-वरिट्ठहु भूप रक रुचिशुद्ध
बुद्ध - बोध प्रवचन - मंजूषा त्रिपिटक रत्न जोगाय
विश्वक कोन-कोनमे सहजहिँ देलनि दल पहुँचाय।।41।।
मगध राजगिरि कुसुमपुरहु राजाश्रित शासन तंत्र
बज्जि लिच्छिवी वैशाली जत विकसित नित गणतंत्र
अटक-कटक धरि कांची गांधारहु व्यापित मत भेल
पुनि सीमा टपि कतय न बौद्धविचार प्रचारल गेल।।42।।
लंका वंका वर्मा नववर्मा हिन्देशिहु पूर
तिब्बत प्राचीनहु चीनहु जयपान मंगोलहु दूर
क्रमहि श्रमण गण भ्रमण निरत रहि बुद्धबोध रुचिदाय
विश्वक कोन-कोनमे सहजहिँ अंत देल पहुँचाय।।40।।