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ज्योति / आद्याशा दास / राजेंद्र प्रसाद मिश्र

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पिछले साल माँगा था एक सूर्य
मेरी हथेली में रख दी किसीने मुट्ठीभर गोधूलि
माँगा था अनंत काल
किसीने दिया समाधिस्थ क्षण चुटकीभर
माँगा था एक अवर्णित सुख
अनजान पीड़ा से जला-भुना
पिछले वर्ष तुम्हें चाहा था
तुम भी आए
पर एक परछाई बन ।

इस साल मैं बन जाऊँगी
सूर्य की एक तेज किरण
चैत का सूर्योदय भेद जाऊँगी
बाँध दूँगी निर्झरणी को
समुद्र को ढक्कन से ढक दूँगी
आसमान को रौशन कर दूंगी
एक बाती जलाकर |

इस साल माँगूगी तुमसे एक स्वगत शब्द
तुम अर्घ्य दोगे उच्चारित महाकाव्य
क्योंकि, बीते वर्ष माँगी थी मैंने भीख
इस साल मैं बाढ़, प्रलय, भूकंप हूँ
तुम्हारे अवांछित, जिद्दी अहंकार का
इस साल मेरी माँग है एक सूर्य
और मुझे जरूर मिलेगा
सौर जगत का समग्र ज्योतिर्मंडल |