झंझावात वह इस जंगल से बचकर गुज़र गया था
वर्षा थी गुनगुनी, वहाँ हर जगह पानी भर गया था
जंगल की उस पगडंडी से मैं तब अकेला गुज़र रहा था
स्याह झुटपुटा शाम का मन में उदासी भर रहा था
सिर पर झलक रहे थे तारे आँसू से बरस रहे थे
चलते-चलते याद आ गई चमक मुझे उन तारों की
छुपे हुए काली पलकों में झलक दें जो इशारों की
आधी रात, बदली छाई थी उसकी गर्म साँसों में गहरे
यौवन का झंझावात था मन में और थे ख़ुशबू के पहरे
गहरे सन्नाटॆ में बिजली की कड़क थरथरा रही थी
वसन्तकाल की उस रात जो तूफ़ान गुज़र गया था
याद मुझे है आज भी वह सब मन में ठहर गया था
पारदर्शी अश्रु-सा वह क्षण मुझ में हूम रहा है
रूप तेरा वह मेरे भीतर फिरकी-सा घूम रहा है
दिन थे उजले वे, मैं तुझ पर न्योछावर था पूरी तरह
(1903)
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय