झड़ गये पत्ते सभी फिर भी हवा चलती रही
पात्र ख़ुद तो चल बसे उनकी कथा चलती रही
मंज़िलों से और आगे भी थी मंज़िल एक और
रास्ते सब रुक गये तो इक दिशा चलती रही
जिस तरह से भी हुआ तय हो गया मेरा सफ़र
इक जगह बैठा रहा मैं और धरा चलती रही
बच नहीं सकता था मैं, था रोग मेरा लाइलाज
सबको यह मालूम था फिर भी दवा चलती रही
कोई पर्वत ही न था जो रोक लेता रास्ता
रेत प्यासी मर गयी, ऊपर घटा चलती रही
एक मुट्ठी कामना की, एक चुटकी आस की
हम ग़रीबों की यूँ ही आजीविका चलती रही