झरन-तीर पर / रणजीत
आओ बैठें
झरन-तीर की स्वच्छ शिला पर
कुछ क्षण
अपना जी बहलाएँ
सर्द शिला से तन सर्दाएँ
मन सहलाएँ
झरने का झरना ही देखें
जिसके तन की सीम-रेख तो ज्यों की त्यों है
पर इन सीमाओं में जो बहता
प्राणों का वह पानी नित्त नया है
सोचें
जीवन नदी और झरने में किसके अधिक निकट है
(दोनों से जो कहीं विकट है!)
ज़रा और तुम पास सरक लो
दूरी को कुछ और दुरा दो
ताकि थपीली हवा में तिरती,
तितलाती-सी नन्हीं बूँदें
हम दोनों के तन पर, मन पर
एक साथ संघात कर सकें,
और एक ही सिहरन से दोनों के तन मन
एक साथ स्पंदित हो पायें!
नैतिकता के मानदंड सब धो जाती है
बूँदों की बौछार चुभीली
और तुम्हारा पैर
बनाता लहर
हिला नीचे फैले पानी को
जो टकरा जाती है रह-रह
मेरे पन-डूबे पैरों से
लगता है: जैसे इस जगह, यहाँ पर
(डाक्टर जिसको दिल कहते हैं) लहरीली सी
कोई गहरी लीक खिंची है
जिसका खिंचना
उतना ही ठंडा है, मीठा है
जितना इस झरने का पानी।