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झरनों जैसा बहना अच्छा है / धीरज श्रीवास्तव

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कभी -कभी पाषाणों से भी कहना अच्छा है ।
मगर हमेशा नहीं प्रिये चुप रहना अच्छा है ।

ठौर मिले जो कहीं न तुमको
मन हो दुनिया से हारा !
और गया हो भले छोड़कर
कोई अपना ही प्यारा !

पीर भुलाकर झरनों जैसा बहना अच्छा है ।
कभी-कभी पाषाणों से भी,कहना अच्छा है ।

दुख आता है तो आने दो
बढ़कर अंगीकार करो !
उठकर बैठो लड़ो भाग्य से
श्रेष्ठ कर्म स्वीकार करो !

कब जीवन के युद्ध क्षेत्र में सहना अच्छा है ?
कभी-कभी पाषाणों से भी कहना अच्छा है ।

निर्धारित है पहले से ही
तेज आँधियों का आना !
जलते रहना किन्तु दीप बन
नहीं हारकर बुझ जाना !

तूफानों के आगे कब यूँ ढहना अच्छा है ।
कभी-कभी पाषाणों से भी कहना अच्छा है ।

अँधियारे में छुपकर रोना
तुम्हें भला कब भाता है ?
उठकर स्वागत करो द्वार पर
नित्य उजाला आता है !

संघर्षों की कड़ी धूप में दहना अच्छा है ।
कभी -कभी पाषाणों से भी कहना अच्छा है ।