झाँसी के गोलघर में / क्रिस्टीना रोजेटी
फड़फड़ा रही थी लौ ज़िन्दगी की,
बुझ रहे थे कई आँखों में,
आस के हज़ारों और लाखों दिये,
आ रहे थे नज़दीक आतताइयों के झुण्ड,
लपट लिए, विध्वंस की आहट लिए,
तौला स्केने ने भय से पीली पड़ती अपनी युवा चंचल पत्नी को --
“क्या समय आ गया है?” — “हां, समय आ गया है”
ज़िन्दगी के लबालब प्याले को हर क्षण पी सकने वाले वे युवा,
सहमे और हक्के-बक्के खड़े थे उस त्रासदी से,
उस विनाश लीला से, विस्फोटक बारूदों से,
अपनी बाँहों को उसकी बाँहों के नज़दीक लाकर,
अपने गालों को उसके गालों से सटाकर,
उसकी भवों के करीब अपनी पिस्तौल लगाकर,
“ओह, प्रभु, उसके लिए उसे माफ़ करना”
“क्या बहुत दर्द होगा?- ‘नहीं मेरे स्वामी:’
काश मैं हम दोनों की पीड़ा ख़ुद ही पी सकती,
काश मैं सारी वेदना ख़ुद में ही समेट सकती,
हिम्मत करो, प्रिय, क्यों काँप रहे हाथ तुम्हारे,
मैं तैयार हूँ, प्रिय संग तुम्हारे चलने को
चुम्बन और चुम्बन : ‘यह पीड़ा नहीं है,
चुम्बन करते-करते मरना है,
एक चुम्बन और – ‘और एक और’
अलविदा.......... अलविदा,
मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : सोनाली मिश्र
और अब पढ़िए कविता मूल अँग्रेज़ी में
HUNDRED, a thousand to one; even so;
Not a hope in the world remained:
The swarming howling wretches below
Gained and gained and gained.
Skene looked at his pale young wife:--
'Is the time come?' -- 'The time is come!'--
Young, strong, and so full of life:
The agony struck them dumb.
Close his arm about her now,
Close her cheek to his,
Close the pistol to her brow--
God forgive them this!
'Will it hurt much?' -- 'No, mine own:
I wish I could bear the pang for both.'
'I wish I could bear the pang alone:
Courage, dear, I am not loth.'
Kis and kiss: 'It is not pain
Thus to kiss and die.
One kiss more.' -- 'And yet one again.' --
'Good-bye.' -- 'Good-bye.'
"In the Round Tower at Jhansi" is reprinted from Goblin Market, The Prince's Progress and Other Poems. Christina Rosetti. London: Macmillan 1879.