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झील किनारे / पद्माकर शर्मा 'मैथिल'

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पानी पर सरसिज पगलाए होंगे,
लहरों पर सपने लहराए होगे,

जब झील किनारे कोई गीत कहा होगा।
जब झील किनारे कोई गीत सुना होगा।

संग सहेली मुसकाई होगी,
आँखों आँखों में शरमाई होगी,
तुमने भी शायद लाज छुपाने को
चुनरी में अंगुली उलझाई होगी,

सुधियों के बादल गहराए होंगे,
प्यासे दो अन्तर अकुलाए होंगे,

जब झील किनारे मन का मीत मिला होगा।
जब झील किनारे कोई मीत मिला होगा।

मिलने को बाहें ललचाई होगी,
भावों की फसलें कुम्हलाई होंगी,
पत्थर से पत्थर की दूरी तक भी
गीतो की कड़ियाँ बह आई होंगी,

अम्बर ने आँसू छलकाए होंगे,
धरती ने उपवन बौराए होंगे,
जब झील किनारे मन में प्यार पला होगा।
जब झील किनारे कोई प्यार पला होगा।