भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

झील पर मुग्‍ध / प्रेमशंकर शुक्ल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

झील पर मुग्‍ध
झील को निहारती है आँख

आँख का जादू
कि झील भी आँख से भेंटते
उड़ेल देती है
अपनी सारी मिठास

दोनों में इतना अपनापा - इतना एका
कि झील कहो तो आँख सम्‍बोधित हो जाती है
और आँख कहो तो झील बोल पड़ती है
‘हाँ' !