भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

झील में / प्रेमशंकर शुक्ल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

झील में
पानी के बुलबुले
ख़ुशी के --
ख़्वाब के
गीत गुनगुनाकर बुझ गए

क्षणभर की
अपनी इस हैसियत पर
बहुत द्रवित हुआ पानी

तभी से --
दर्द भरे गीतों को सुनकर
आँख की कितनी भी गहराई में हो पानी
छलक आता है बनकर आँसू
और गीतों में दर्द का रंग
गाढ़ा करता रहता है