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झुककर प्रणाम / भागवतशरण झा 'अनिमेष'

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सुकवि हरिवंशराय बच्चन को समर्पित

अन्याय को मैं क्यों करूँ
झुककर प्रणाम

सेवक सही, याचक नहीं हूँ
असत्य का वाहक नहीं हूँ
तलवे चाटूँ क्यों किसी के,
मैं नहीं किसी का गुलाम
अन्याय को मैं क्यों करूँ
झुककर प्रणाम

तमस है, कुहरा घना है
और सच कहना मना है
पंथ अपना कँटकित है
और ध्वज अरुणिम ललाम
अन्याय को मैं क्यों करूँ
झुककर प्रणाम

राजा यहाँ नंगा खड़ा है
अक्ल पर परदा पड़ा है
हमने दिखाया आईना,
खोले हैं अब प्यादे भी लाम
अन्याय को मैं क्यों करूँ
झुककर प्रणाम