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झुकै नै देशऽ के धजा / कुंदन अमिताभ

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कण-कण में अलख जगाबऽ
मानव सें दानव केॅ भगाबऽ
फर्ज आपनऽ आपन्हैं पेॅ लादऽ
झुकै नै देशऽ के धजा संभालऽ।
पल प्रतिपल नै लोर बहाबऽ
समर भूमि में आगू आबऽ
डेग-डेग पर धूल चटाबऽ
दुश्मन केॅ रणछोड़ बनाबऽ
विश्वासऽ सें अलग भेॅ रहलै
बलिदानऽ सें विलग भेॅ रहलै
नव निर्माणऽ सें मुकरी चुकलऽ
मानवता के घर बाड़ सँभालऽ।
धीर-धीर मन व्याकुल भेॅ रहलै
नैतिकता के वध हर पल भेॅ रहलै
घुप्प अन्हारऽ तऽर दबलऽ पड़लऽ
इंजोरऽ के पधार लगाबऽ।
दूषित भेलै नदी नद निर्झर
माटी हवा सब पर्वत शिखर
अमृत सें बनी रहलऽ जहर सें
हर प्राणी केॅ त्राण दिलाबऽ।
कम्प्यूटर युग के तेज संधारऽ
बोतल बंद पानी केॅ नकारऽ
स्वदेशी अपनाबऽ रोजगार दिलाबऽ
मल्टीनेशनल के फन केॅ जराबऽ।
भ्रष्टाचार केरऽ जहर खंङारऽ
आतंकवाद केरऽ नरक मेटाबऽ
नर-नारी में अनुरूपता लानऽ
लोकतंत्र केॅ मजबूत बनाबऽ।
गेलै कहाँ होठऽ के मुस्कान मृदुल
कण-कण में छिपलऽ देशऽ के मान विपुल
हारलऽ पारलऽ हताश नै बैठऽ
स्थिर योद्धा केॅ गतिमान कराबऽ।
दृढ़ प्रतिज्ञ कहाँ छै बोलऽ
जयगानऽ के गान कबेॅ बोलऽ
धु्रव पथ सें अबेॅ बगदी चुकलऽ
आजादी के हर डेग सँभालऽ।