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झुलस रहा है गाँव / संजीव वर्मा ‘सलिल’

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झुलस रहा गाँव
घाम में झुलस रहा

राजनीति बैर की उगा रही फसल
मेहनती युवाओं की खो गयी नसल
माटी मोल बिक रहा बजार में असल
शान से सजा माल में नक़ल

गाँव शहर से कहो
कहाँ अलग रहा?
झुलस रहा गाँव
घाम में झुलस रहा

एक दूसरे की लगे जेब काटने
रेवड़ियाँ चीन्ह-चीन्ह लगे बाँटने
चोर-चोर के लगा है ऐब ढाँकने
हाथ नाग से मिला लिया है साँप ने

'सलिल' भले से भला ही
क्यों विलग रहा?
झुलस रहा गाँव
घाम में झुलस रहा