भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
झूठ ई भंवै / ओम पुरोहित कागद
Kavita Kosh से
कुण कैवै
अर क्यूं कैवै
झूठ रै नीं हुवै पग?
झूठ ई भंवै
भव में
चोगड़दै
ढूकै
सांच सूं पै ली।