झूठ बोलती लड़कियाँ / ज्योति चावला
न जाने क्यों झूठ बोलती लड़कियाँ
मुझे अच्छी लगती हैं
झूठ बोलती लड़कियों का झूठ बोलना
न जाने क्यों मुझे अच्छा लगता है
अच्छा लगता है उनका झूठ बोलकर
कुछ पल चुरा लेना सारे दायरों से
इन चुने हुए कुछ पलों में वे
फड़फड़ा आती हैं अपने पँखों को
कुछ देर के लिए खुली हवा में और
सुते हुए नथुनों में भर की हवा के ताज़े झोंके
वे फिर लौट आती हैं अपने पहले से तय दायरों में
झूठ बोलती लड़कियाँ बोलती हैं छोटे-छोटे झूठ
और अपने जीवन के चुभते-नुकीले सचों को
ताक पर रख देती हैं कुछ देर के लिए
वे छूती हैं झूठ से बनी इस छोटी-सी दुनिया को
अपनी कोमल उँगलियों के कोमल पोरों से और
उसकी सिहरन से भीतर तक झूम जाती हैं
झूठ बोलती लड़कियाँ बोलती हैं झूठ और
उन पलों में अक्सर कहती हैं
दुनिया ख़ूबसूरत है, इसे ऐसा ही होना चाहिए ।