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टपक रहा है शहद / सुरेश विमल
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टपक रहा है शहद किसी
ने ढोला मारा छत्ते को।
लड़के आए थे शाला के
कुछ माली ने बतलाया
झड़ा दिए फल बगिया के सब
कुछ फेंके कुछ को खाया।
कुचल मसल डाली फुलवारी
तोड़ा पत्ते-पत्ते को।
घूम रहे थे बड़ी देर से
हजरत यह कक्षाएँ छोड़
लगी भागने की शाला से
इन सब की आपस में होड़।
आए कहाँ छिपा कर जाने
अपने अपने बसते को।
छुट्टी की घंटी लगने पर
लौट जाएंगे यह घर को
जाने कितनी मेहनत की है
पकड़ेंगे ऐसे सिर को।
चुना हुआ है आख़िर क्यों कर
लड़कों ने इस रस्ते को।