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टपान / रमाकांत द्विवेदी 'रमता'
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बाटे टपान बस इहे, कदम बढ़ा के चल
आवे दे, का भइल अगर तूफान आ गइल
बिछिली भइल अन्हार में, बरखा बरिस गइल
बिजुरी सुझाई राह, तनि नोंह गड़ा के चल
साथी-समाज ना छूटे, कसिके हँकार ले
के दो गिरे-गिरे भइल, धइले-सँभार ले
नइ के उठाउ, अब बा, कान्हा चढ़ाके चल
खेवा-खरच ओरा गइल, चिन्ता के बात का
पेटे भइल पहाड़ त, शिव के जमात का
हिम्मत न हार, जान के बाजी लड़ाके चल
फाटी कुहेस, सब घरी अन्हार ना रही
फहरी निशान जय के, झुर-झुर पवन बही
जिनिगी के बिपत-बिघिन के, कबड्डी पढ़ाके चल
रचनाकाल : 24.08.1956