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टाइपराइटर-सी जिंदगी / सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश'

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मौन है या फिर मुखर सी जिन्दगी है।
स्निग्ध या कंटक प्रखर सी जिनदगी है।

जिस तरह चाहे चलाए आपरेटर
एक टाइपराइटर सी जिन्दगी है।

चिन्तनों के सघन वन में फँस हुई
जिन्दगी से बेखबर सी जिन्दगी है।

है कभी फुटपाथ का पत्थर, कभी
चन्द्रमुखियों के चवर सी जिन्दगी है।

संक्रमण के दौर में कहना कठिन
गाँव सी है या शहर सी जिन्दगी है।

दुष्ट शोषण ने बना डाला दलित
आँसुओं के मौन स्वर सी जिन्दगी है।

बाल दर्पण पर गयी जब जब नजर
मुस्कुराहट के चवर सी जिन्दगी है।