आसमान में उड़ी
टिटिहरी,
और उड़ते-उड़ते
बोलते-बोलते बोल,
दृष्टि से पार निकल गई
जैसे
कोई कटार
हृदय के पार निकल गई ।
('पंख और पतवार' नामक कविता-संग्रह से)
आसमान में उड़ी
टिटिहरी,
और उड़ते-उड़ते
बोलते-बोलते बोल,
दृष्टि से पार निकल गई
जैसे
कोई कटार
हृदय के पार निकल गई ।
('पंख और पतवार' नामक कविता-संग्रह से)