भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
टुइयाँ थी एक चतुर बोल गई / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
टुइयाँ थी एक चतुर बोल गई
दुर्दिन में छन्द-अर्थ खोल गई
सागर पर एक तड़ित तैर गई
मिनटों में अन्धकार पैर गई
आया था संकट घन मार गया
फूलों की छड़ियों से हार गया