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ठंड / अभिनंदन
Kavita Kosh से
काँपै गाछ, बिरीछ छै, सब्भे छै भयभीत
देखारोॅ आबेॅ पड़ै, बरफ उड़ैतें शीत ।
पानी कनकन्नोॅ लगै, एकदम बड़ी ठहार
अगहन नै पावै कभी, पूस-माघ के पार ।
शीत रीतु के काल में, अजब दिखै संसार
केकरो लेॅ तेॅ सुख यही, केकरो लेॅ तेॅ भार ।
भले नुकैलोॅ नीड़ में, चिड़ियाँ चुनमुन शोर
खेत मगर ई शीत में, एकदम हरा कचोर ।
चढ़ी कुहासोॅ पालकी, ऐलै रीतु शीत
कम्बल, केथा, ओढ़ना, सब्भे छै भयभीत ।
बच्चा-बूढ़ोॅ चाहै छै, शीत ऋतु में रौद
जरो सुहावै छै कहाँ, पानी केरोॅ हौद ।
कुछ लोगोॅ के वास्तें, उत्सव लागै शीत
कुछ लोगोॅ के वास्तें, मरन काल के गीत ।