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ठण्ड से जमा प्रदेश / योसिफ़ ब्रोदस्की

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ठण्ड से जम गया है यह समृद्ध प्रदेश ।
प्रतिबिम्ब के दूध में छिप गया है शहर ।
घण्टियाँ बजने लगी हैं ।
लैम्पशेड सहित एक कमरा । हुल्‍लड़ मचा रहे हैं देवदूत
ठीक जैसे रसोई से निकलते बेयरे ।

मैं तुम्‍हें यह पृथ्‍वी के दूसरे छोर से लिख रहा हूँ
ईसा मसीह के जन्‍मदिवस पर । बाहर बर्फ़ का ढेर
निष्‍ठापूर्वक कहता है -- 'ऐ लोगो !'
उजाला बढ़ रहा है शीघ्र ईसा
दो हज़ार वर्ष के हो जाएँगे । बचे हैं केवल चौदह वर् ष।
आज बुधवार है । कल वीरवार । इस जयन्ती पर,
डर है, हम कुछ जुगाड़ नहीं कर पाएँगे सम्भावित झुर्रियों को ।
आम भाषा में कहें तो, उसके गाल से ।
और तभी हम मिलेंगे जैसे तारा मिलता है गाँव वालों से
एक दीवार पार कर, एक उँगली से जगाया गया पिआनों
कष्‍ट पहुँचा रहा है कानों को जैसे कोई
वर्णमाला सीख रहा हो ।
या खगोलविद्या कुछ होती ही नहीं जब देखते हैं
व्‍यक्तिवाचक संज्ञाओं को वहाँ अंकित, जहाँ हम हों ही न ।
जहाँ योगफल निर्भर करता हो घटाने की प्रक्रिया पर।