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ठहराव / नरेश मेहन
Kavita Kosh से
ठहराव
कितना कष्टदायक है
यह बात
सूरज से पूछिए।
भोर में
जब सूरज उगता है
और शाम ढले
जब सुस्ताने जाता है
जब
कितना शांत होता है?
मगर
जब उसे ठहरना होता है
दोपहरी मे धरती के ऊपर
तब कितना चिलचिलाता है
उसके चेहरे पर
अथाह रक्तिम क्रोध
उभर आता है।
शायद वह
चलने में ही
सार समझता है
और यही बात
समझाना चाहता है
आदमी को
दिन भर।