भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ठा कै इतना भारी कसौला / रामफल सिंह 'जख्मी'
Kavita Kosh से
ठा कै इतना भारी कसौला
बाड़ी का नुलांवां खेत
कड़ा-कड़ बाजै कसौला
दोनूं बच्चे साथ म्हं
पसीना आवै गात म्हं
गोड्यां चढ़ ज्या रेत
कड़ा-कड़ बाजै कसौला
जो पाणी पीवै पांथ म्हं
उनै फेर रळण दे ना साथ म्हं
ये पहले करवाते चेत
कड़ा-कड़ बाजै कसौला
जोर जेठ का घाम सै
लुआं म्हं सुकड्या चाम सै
आधी झड़ ज्या सेहत
कड़ा-कड़ बाजै कसौला
दिन रात पड्या रह खेत म्हं
बिना बिछायां रेत म्हं
हो ‘रामफल सिंह’ भी सैत
कड़ा-कड़ बाजै कसौला