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ठाह ई नीं पड़ी / ओम पुरोहित ‘कागद’

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पाणीं तो
हरमेस ई भरती
गिलास सूं सरु होय
घड़ै तांईं पूगी
मा री पकड़ आंगळी।

घड़ो ऊंचता-ऊंचांवतां
कूवै री पाळ
ना बो बोल्यो
ना म्हैं बतळायो
ठाह ई नीं पड़ी
कद मांखर
उतरगी प्रीत काळजै
आंख्यां गेलै
अब अंतस ऊकळै
आंख्यां भरीजै पाणीं
घर रै पाणीं
थाम दिया पग!