भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ठा‘ई पड़ै कोनी / हरीश बी० शर्मा
Kavita Kosh से
सैंताळीस रै साल
म्हारो देस
गौरां सूं आजाद हुयो
च्यारूंमेर उछाव मनायो
पतो नीं फेर कद
आथूण सूं आंवती हवा में
रळ-मिळ‘र
अपणायत भूलग्या
अर पाछा
चाकर बणग्या।